ईद-उल-अज़हा कैसे मनाएँ...???
ईद-उल-अज़हा कैसे मनाएँ...???
लेखक :नासिर मनेरी
अल्लाह पाक ने हमें तीन ईदों का तोहफा दिया| ईद मीलाद-उन-नबी (ﷺ) ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अज़हा| ईद मीलाद-उन- नबी (ﷺ) ईदों की ईद है कि इसी दिन हज़रत मोहम्मद (ﷺ) का जन्म हुआ| ईद उल फित्र रमज़ान की इबादतों के बाद अल्लाह पाक हमें पुरस्कार के रूप में प्रदान करता है और ईदु-उल-अज़हा को हम हज़रत इब्राहीम (علیہ السلام) की यादगार के रूप में मनाते हैं| यहाँ ईद-उल-अज़हा के कुछ मसअले बयान किए जा रहे हैं|
तकबीरे तशरीक:
नौवीं ज़िलहिज्जा की सुबह से तेरहवीं की अस्र तक हर पंज-गाना फर्ज़ नमाज़ के बाद जो मुस्तहब जमाअत के साथ पढ़ी गई हो, एक बार जोर से तकबीर कहना वाजिब है और तीन बार बेहतर| इसे तकबीरे तशरीक कहते हैं, वह यह है:
“अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ला इला ह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर वलिल्लाहिल हम्द”
(तनवीर-उल-अबसार, भागः 3, पेजः 71-74)
ईद-उल-अज़हा के मुसतहब्बात:
बक़राईद के दिन ये चीजें मुस्तहब हैं: बाल कटवाना, नाखुन काटना, स्नान करना, मिसवाक करना, अच्छे कपड़े पहनना, खुशबू लगाना, ईदगाह इतमीनान और वक़ार के साथ पैदल जाना, एक रास्ते से जाना और दूसरे से वापस आना, जाने से पहले कुछ न खाना| रास्ते में जोर से तकबीर कहना| खुशी प्रकट करना और खूब दान करना आदि|
(फतावा हिन्दिया,1/149, दुर्रे मुखतार, 3/54 आदि)
ईदुल अज़हा की नमाज़ का तरीक़ा:
पहले यूँ नीयत करें "नीयत की मैं ने दो रकअत नमाज़ वाजिब ईद-उल-अज़हा की छह अधिक तकबीरों के साथ अल्लाह के लिए पीछे इमाम के मुंह मेरा काबे की तरफ अल्लाह अकबर" और हाथ बाँधकर सना पढ़ें| फिर तीन तकबीरें कहें| हर तकबीर में हाथ कानों तक उठा कर छोड़ दें| तीसरी तकबीर के बाद हाथ बाँध लें| फिर इमाम साहब किराअत करेंगे, मुक़तदी सुनें| दूसरी रकअत में क़िराअत खत्म कर के तीन तकबीरें कहें| हर तकबीर में हाथ कानों तक ले जाएँ और छोड़ दें, छौथी तकबीर कहकर रुकू करें| चौथी तकबीर में हाथ न उठाएँ न बांधें| फिर दूसरी नमाज़ों की तरह नमाज़ पूरी करें| नमाज़ के बाद खुतबा सुनें|
क़ुर्बानी की फज़ीलत :
क़ुर्बानी इस्लाम का एक शिआर है, जिसकी बहुत फज़ीलत और अहमियत है| रसूल पाक ﷺ को क़ुर्बानी का आदेश दिया गया| अल्लाह पाक ने कहा: अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुरबानी करो|
(सूरे कौसर, आयत: 2)
हदीस में इसकी बड़ी फज़ीलत आई है| इसके करने पर सवाब और छोड़ने पर अज़ाब है| रसूले पाक ﷺ ने फरमाया: क़ुर्बानी के दिनों में इंसान का कोई अमल अल्लाह पाक के पास क़ुर्बानी करने से अधिक प्यारा नहीं और वह जानवर क़्यामत के दिन अपने सींगों, बालों और खुरों के साथ आएंगे| और क़ुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह पाक के पास स्वीकृति के स्थान पर पहुँच जाता है तो इसे खुश दिली से करो|
(तिर्मिज़ी शरीफ, 3/162, हदीस संख्या: 1498)
दूसरी हदीस में है: जिसे क़ुर्बानी करने की हैसियत हो और क़ुर्बानी न करे वह हमारे ईदगाह के पास न आए|
(सुनने इब्ने माजा 3/529, हदीस संख्या: 3123)
क़ुर्बानी के मसअले :
(1) क़ुर्बानी हर मुसलमान, मुकल्लफ़, आज़ाद, मुक़ीम, मालिके निसाब पर वाजिब है|
(2) मालिके निसाब वह है जिसके पास हाजते असलिया के अलावा साढ़े बावन तोला (653.184 ग्राम) चांदी या साढ़े सात तोला (93.312 ग्राम) सोना या इतनी क़ीमत की कोई चीज़ हो|
(3) हाजते असलिया वह चीज़ है, जो ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए ज़रूरी है| जैसे: मकान आदि|
(4) क़ुर्बानी वाजिब होने के लिए पुरुष होना जरूरी नहीं महिला पर भी वाजिब है|
(5) घर में जितने लोग मालिके निसाब हैं सभी पर अपनी ओर से क़ुर्बानी वाजिब है|
(6) मालिके निसाब अगर किसी दूसरे के नाम से जैसे रसूल पाक ﷺ या किसी बुजुर्ग या किसी मरहूम के नाम से करना चाहे तो उसके लिए दूसरी क़ुर्बानी करनी होगी|
(7) मालिके निसाब जब तक निसाब का मालिक है उस पर हर साल क़ुर्बानी वाजिब है|
(8) मालिके निसाब ने अगर क़ुर्बानी की मन्नत मानी तो उस पर दो क़ुर्बानियाँ वाजिब हो गईं| एक वह जो उस पर वाजिब है और दूसरी मन्नत की वजह है| और दो या दो से अधिक की मन्नत मानी तो जितनी की मन्नत मानी सब वाजिब हैं|
(9) बालिग़ लड़कों या पत्नी की ओर से क़ुर्बानी करना चाहें तो उनसे अनुमति लेनी होगी| बिना अनुमति के उनकी तरफ से क़ुर्बानी नहीं होगी|
(10) क़ुर्बानी के दिनों में क़ुर्बानी ही ज़रूरी है, उसकी जगह कोई दूसरी चीज नहीं हो सकती, यानी क़ुर्बानी के बदले उसकी क़ीमत सदक़ा कर देना काफी नहीं|
(11) क़ुर्बानी का समय दसवीं ज़िलहिज्जा की सुबह से बारहवीं की अस्र तक है|
(12) जहाँ ईद की नमाज़ होती हो वहाँ नमाज़ से पहले क़ुर्बानी सही नहीं|
(13) क़ुर्बानी के लिए ज़रूरी है कि ऊँट: पाँच साल, गाय, बैल, भैंस: दो साल और बकरा एक साल का हो| इससे एक दिन का भी कम हो तो उसकी क़ुर्बानी नहीं होगी|
(14) क़ुर्बानी का जानवर बे-ऐब हो, वरना अगर कान, पूँछ एक तिहाई से अधिक कटे हों, सींग जड़ से टूटी हो तो ऐसे जानवर की क़ुर्बानी जाइज़ नहीं| इसी तरह कोई जानवर इतना कमजोर है कि क़ुर्बान-गाह तक खुद नहीं पहुँच सकता या लंगड़ा है या खुजली की बीमारी है, जो मांस तक पहुँच चुकी है तो उसकी क़ुर्बानी नहीं होगी|
(15) क़ुर्बानी का जानवर खरीदने के बाद अगर लंगड़ा हुआ या कोई विश्वसनीय दोष पैदा हो गया तो अगर जानवर खरीदने वाला अभी भी मालिके निसाब है तो उस पर नया जानवर खरीद कर क़ुर्बानी करना वाजिब है|
(16) एक जानवर में जितने लोग शरीक हैं सबका अक़ीदा सही होना चाहिए, अगर उनमें कोई बदमज़हब हो या किसी की नीयत केवल मांस खाने की हो तो किसी की क़ुर्बानी नहीं होगी|
(17) जिस नाम से क़ुर्बानी होनी है उसे चाँद देखकर क़ुर्बानी करने तक बाल और नाखून न काटना और बकराईद के दिन क़ुर्बानी होने तक कुछ न खाना मुस्तहब है, लेकिन उस दिन रोज़े की नीयत से भूखा रहना हराम है|
ज़बह के मसअले :
(18) एक जानवर के सामने दूसरे को ज़बह करना मना है| रात में ज़बह करना मकरूह है| ज़बह के समय तीन रगें काटना और ज़बह से पहले बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर पढ़ना ज़रूरी है|
गोश्त के मसअले :
(19) क़ुर्बानी का मांस गैर मुस्लिम को देना सही नहीं है| कसाब को मजदूरी के रूप में देना नाजाइज़ है| क़ुर्बानी का मांस अनुमान से बाँटना जाइज़ नहीं बल्कि वजन करके बाँटना ज़रूरी है|
खाल के मसअले :
(20) क़ुर्बानी की खाल या उसे बेच कर उसकी कीमत मदरसा, मस्जिद और हर नेक काम में दी जा सकती है| उसे कसाब को मज़दूरी के रूप में देना जाइज़ नहीं| हदीसे पाक में जो बेचने के लिए मना किया गया है वह अपने लिए बेचना है|
क़ुर्बानी का तरीका:
जानवर को बाएँ पहलू पर इस तरह लिटाएँ कि उसका मुँह काबे की तरफ हो और अपना दाहिना पैर उसके पहलू पर रखकर तेज चाकू से जल्द ज़बह करें और ज़बह से पहले यह दुआ पढ़ें:
“इन्नी वज्जहतु वजहि-य लिल्लज़ी फतरस समावाति वल अर ज़ हनीफौं वमा अ न मिनल मुशरिकीन इ-न्न सलाती व नुसुकी व महया-य व ममाती लिल्लाहि रब्बिल आ-लमीन ला शरी-क लहू वबिज़ालि-क उमिरतु व अ-न मिनल मुसलिमीन अल्लाहु-म्म ल-क व मिन-क बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर”
इसे पढ़ कर ज़बह करें| क़ुर्बानी अपनी तरफ से हो तो ज़बह के बाद यह दुआ पढ़ें|
“अल्लाहु-म्म तक़ब्बल मिन्नी कमा तक़ब्बल-त मिन ख़लीलि-क इब्राहीम व हबीबि-क मोहम्मद ﷺ”
और अगर दूसरे की तरफ से हो तो मिन कहकर उसका नाम लें और बिन कहकर उसके पिता का नाम लें|
(माखूज़ अज़ दुर्रे मुख़तार, तनवीरुल अबसार, फतावा ख़ानिया, फतावा हिन्दिया, बहारे शरीअत वग़ैरह)
अख़ीर में अल्लाह पाक की बारगाह में दुआ है कि मौलाए पाक अपने हबीब पाक (ﷺ) के तुफ़ैल हमें ख़ुलूसे नीयत के साथ क़ुर्बानी करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए, रियाकारी और दिखावा से बचाए और हमारी क़ुर्बानियों को अपनी बारगाह में क़बूल करे| (आमीन| या रब्बल आलमीन)
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