रहमत व मग़फ़िरत की हसीन रात—शबे बरातलेखकः नासिर मनेरीसंपर्कः 9905763238۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔गर चाहते हो बख़शिश आई शबे बरात|कर लो ज़रा सी कोशिश आई शबे बरात|| नासिर मनेरी की है ये अर्ज़ दोस्तो!करवा लो रब से बख़शिश आई शबे बरात||शबे बरात की फज़ीलतःशाबान के महीने की बहुत फ़ज़ीलत आई है, हुज़ूर ने इसे अपना महीना क़रार दिया है, ख़ास कर इसकी पँद्रहवीं रात (यानी शबे बरात) की बहुत फ़ज़ीलत आई है| अल्लामा अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमा समेत बड़े बड़े मुहक़्क़िक़ों ने इस पर किताबें लिखीं और इमाम इब्ने माजा जैसे मुहद्दिस समेत बहुत से हदीस के इमामों ने इसके लिए बाब क़ायम किया| यहाँ सही हदीसों की रोशनी में इसके फ़ज़ाइल व मामूलात पेश किए जा रहे हैं :इमाम इब्ने माजा सही सनद के साथ हज़रत अली बिन अबी तालिब से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर ने फरमायाः जब शाबान की पँद्रहवीं रात आ जाए तो उस रात को इबादत में गुज़ारो और उस के दिन में रोज़ा रखो, क्योंकि अल्लाह तआला सूरज डूबने के वक़्त से आसमान पर नुज़ूल फरमाता है और एलान करता है कि है कोई बख़शिश चाहने वाला कि मैं उसे बख़्श दूँ? है कोई रोज़ी माँगने वाला कि उसे रोज़ी दूँ? है कोई बीमार कि उसे शिफा दूँ? है कोई ऐसा? है कोई वैसा? और ये फजर के वक़्त तक फरमाता है| (सु-नने इब्ने माजा,हदीसः1388) लिहाज़ा जो भी अल्लाह की रहमत और बख़शीश व मग़फिरत चाहता हो उसे चाहिए कि ये रात इबादत में गुज़ारे और इस के दिन में रोज़ा रखे|शबे बरात की नमाज़ःमग़रिब की नमाज़ पढ़ने के बाद 6 रकअतें 2-2 कर के पढ़ें| पहली 2 रकअतों से पहले यूँ दुआ करेः ऐ अल्लाह! इन 2 रकअतों की बरकत से मुझे दराज़िए उम्र बिलख़ैर अता फरमा| दूसरी 2 रकअतों से पहले यूँ दुआ करेः ऐ अल्लाह! इन 2 रकअतों की बरकत से मुझे बलाओं से महफूज़ फरमा| तीसरी 2 रकअतों से पहले यूँ दुआ करेः ऐ अल्लाह! इन 2 रकअतों की बरकत से मुझे अपने अलावा किसी का मुहताज ना रख| हर रकअत में सू-रए फातिहा के बाद सू-रए इख़लास (क़ुल हुवल्लाह) 3 बार और हर दो रकअतों के बाद सू-रए इख़लास 21 बार पढ़ें| सू-रए यासीन भी 1 बार पढ़ या सुन लें, और हर सू-रए यासीन के बाद ये दुआ पढें :अल्लाहुम-म या ज़ल-मन्नि वला युमन्नु अलैह, या ज़ल-जलालि वल-इकराम, वया ज़त्तौलि वल-इनआम, ला इला-ह इल्ला अन्-त ज़हरुल्लाजीन, वजारुल मुस-तजीरी-न वअमानुल ख़ाइफ़ीन, अल्लाहुम्-म इन कुन-त क-तब-तनी इन्-द-क फ़ी उम्मिल किताबि शक़िय्या, औ महरूमन औ मतरूदन औ मुक़तरन अलय्-य फ़िर्रिज़्क़, फ़म्हुल्लाहुम्-म बिफ़ज़लि-क शक़ावती वहिरमानी वतरदी वक़ता-र रिज़क़ी, वअसबितनी इन-द-क फ़ी उम्मिल किताबि सईदम मरज़ूक़म मुवफ़्फ़क़ल लिल ख़ैरात, फ़इन्न-क क़ुल्-त व क़ौलुकल हक़्क़ु फ़ी किताबिकल मुनज़्ज़ल, अला लिसानि नबिय्यिकल मुरसल, “यम्हुल्लाहु मा यशाउ वयुसबितु वइन्दहू फ़ी उम्मिल किताब” इलाही बित्तजल्लिल आज़म, फ़ी लैलतिन निस्फ़ि मिन शहरि शअबानल मुकर्रम, अल्लज़ी युफ़रक़ु फ़ीहा कुल्लु अमरिन हकीमिँव वयुबरम, अन तकशिफ़ अन्ना मिनल बलाइ वल-बलवाइ मा नअलमु वमा ला नअलम, वअन-त बिही आलम, इन्न-क अन्तल अअज़्ज़ुल अकरम, वसल्लल लाहु त्आला अला सय्यिदिना मुहम्मदिँव वअला आलिहि वअसहाबिही वसल्लम, वलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आ-लमीन|(मा ज़ा फ़ी शअबान, पेजः105,अज़ अल्लामा अलवी मालिकी मक्की अलैहिर्रहमा)शबे बरात का रोज़ाःशाबान के महीने और ख़ास तौर से शबे बरात के रोज़े की बड़ी फ़ज़ीलत आई है| इमाम नसई सही सनद के साथ हज़रत उसामा बिन ज़ैद से रिवायत करते हैं कि उन्होंने हुज़ूर से अर्ज़ कीः या रसूलल्लाह! जिस क़दर आप शाबान में रोज़े रखते हैं किसी और महीने में नहीं रखते? हुज़ूर ने फरमायाः ये ऐसा महीना है, जो रजब और रमज़ान के बीच में आता है और लोग इस से ग़फलत बरतते हैं, हालाँकि इस महीने में पूरे साल के अमल अल्लाह को पेश किये जाते हैं लिहाज़ा मैं चाहता हूँ कि मेरा अमल रोज़ादार होने की हालत में उठाया जाए| (सु-नने नसई, हदीसः2357)लिहाज़ा इस महीने में ज़्यादा से ज़्यादा रोज़े रखें, ख़ास कर शबे बरात का रोज़ा ज़रूर रखें|शबे बरात का वज़ीफ़ाःशबे बरात के मुक़द्दस मौक़े पर यह दुआ ज़यादा से पढ़ी जाए, साहिबे मिशकात अल्लामा तबरेज़ी फरमाते हैं कि यह दुआ हुज़ूर से साबित है| अल्लाहुम्म इन्न-क अफ़ुव्वन तुहिब्बुल अफ़्-व फ़अफ़ू अन्नी| (मिशकात शरीफ, 1/183) यह दुआ ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें |शबे बरात का हलवाःशबे बरात के पुर बहार मौक़े पर हलवा या फातिहा व ईसाले सवाब के लिए दूसरे खाने पकाना ना तो फ़र्ज़ या वाजिब है और ना ही नाजायज़ व हराम बल्कि दूसरे खानो की तरह इसे पकाना भी एक जायज़ और मुबाह काम है और अगर इस नेक नियती के साथ हो कि अच्छा खाना पका कर ग़रीबों, मिस्कीनों और ज़रूरत मंदों को खिलाए तो ये सवाब का काम है| और हल्वा (शीरीनी, मिठाई, मीठी चीज़) चूँकि हुज़ूर पसंद फरमाया करते थे जैसा कि हदीसे पाक में है इमाम बुख़ारी सही सनद के साथ हज़रत आएशा से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर हल्वा (मीठी चीज़) और शहद पसंद करते थै|(बुख़ारी शरीफ, हदीसः5268)लिहाज़ा इसे पका कर बुज़र्गों के नाम ईसाले सवाब करना (फातिहा दिलाना) भी जायज़ काम है और इसे हराम या शिर्क कहना अक़्ल व शरीअत के ख़िलाफ है|क़ब्रिस्तान जानाःकब्रों की ज़ियारत के लिए जाना सुन्नत है| हुज़ूर ने क़ब्रों की ज़ियारत की है और इस का हुक्म भी दिया है| इस के फायदे और बरकतें भी बताई हैं, हदीसे पाक में इमाम मुस्लिम सही सनद के साथ हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर ने फरमायाः क़ब्रों की ज़ियारत करो इसलिए कि वो दुनिया से बे रग़बत करती और आख़िरत की याद दिलाती है| (मुस्लिम शरीफ, हदीसः2148)जब क़ब्र पर जाएँ तो पहले सलाम पेश करें, इमाम तिर्मिज़ी सही सनद के साथ हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं कि हुज़ूर जब मदीने के क़ब्रिस्तान से गुज़रे तो यूँ कहाः अस्सलामो अलैकुम या अहलल क़ुबूर, यग़फ़िरुल्लाहु लना वलकुम, अन्तुम सलफुना व नहनु बिलअसर| (तिर्मिज़ी शरीफ, हदीसः1055)फिर पाइँती की जानिब से जा कर मय्यत के चेहरे के सामने खड़े हों और फातिहा पढ़ें| (दुर्रे मुख़तार,3/179)आतिशबाज़ीःशबे बरात जहन्नम की भड़कती आग से बराअत(यानी छुटकारा पाने) की रात है मगर अफसोस सद करोड़ अफसोस कि इस रात बहुत से मुसलमान जहन्नम की आग से छुटकारा हासिल करने की बजाय ढ़ेर सारे रूपये पैसे ख़र्च कर के अपने लिए आतिशबाज़ी का सामान खरीदते हैं और ख़ूब पटाख़े वग़ैरा छोड़ कर इस मुक़द्दस रात का तक़द्दुस पामाल करते हैं| जब्कि आतिशबाज़ी (यानी पटाख़े वग़ैरा छोड़ना) हराम हराम सख़्त हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है|अल्लाह से दुआ है कि हमें यह रात इबादत में गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और घूमने फिरने व पटाख़े छोड़ने से बचने की तौफीक़ अता फरमाए| आमीन
نیت کی اہمیت و افضلیت قرآن و حدیث کی روشنی میں تحریر : ناصر منیری ارشاد خداوندی ہے: وَلَا تَطْرُدِ الَّذِیۡنَ یَدْعُوۡنَ رَبَّہُمۡ بِالْغَدٰوۃِ وَ الْعَشِیِّ یُرِیۡدُ...
اسلام میں اخوت و بھائی چارے کا تصور۔۔۔قرآن و حدیث کی روشنی میں اِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ اِخْوَةٌ فَاَصْلِحُوْا بَیْنَ اَخَوَیْكُمْ وَ اتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُم...
16 سیدوں کا روزہ، 18 سیدوں کی نماز، 20 سیدوں کی کہانی... دور حاضر کا ایک المیہ یہ بھی ہے کہ اہل عقیدت کی عقیدت مندی دیکھ کر ان کے اعتقاد سے کھلواڑ کیا جانے لگا۔ اس سلسلے میں جوشیلی اور ...
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