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अशरफिया पैमाने पर प्रकाशित होने वाले पंद्रह रोज़ा अख़बार “ताबाँ” का मुझे विशेष अंक निकालना था| मौसम के अनुसार मैं ने “ऐवान-ए-अशरफिया के उभरते शोअरा नंबर” निकालने का एलान नामा लगा कर फरज़न्दान-ए-अशरफिया को सुचित कर दिया कि शेअर-ओ-सुख़न से दिलचस्पी रखने वाले तलबा(विधार्थी) अपने मुन्तख़ब अशआर ले कर “ताबाँ” के दफतर में हाज़िर हों जाएँ| चुनाँचे जहाँ बहुत से शोअरा अपने-अपने अशआर ले कर आए वहीं एक हाथ में काग़ज़ लिए एक ऐसा बच्चा भी सामने आया जिसके होँटों पर मुसकुराहट थी और पेशानी पर सितारा-ए-इक़बाल जगमग-जगमग कर रहा था| अलैक-सलैक के बाद हाथों से एक काग़ज़ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहाः इसे ‘ताबाँ’ में शाया कर दीजिए गा| काग़ज़ खोल कर देखा तो उसमें ये पंक्तियाँ दर्ज थी| लीजिए आप भी मुसकुराते लबों से एक बार पढ़ लीजिएः
ख़ाक-ए-तैबा में मिला जिसको मकाँ होता है||
क्या नहीं मेरे शहा तुझपे अयाँ होता है?
जब्कि अल्लाह ही तुझसे न निहाँ होता है||
दिल में जब यादे नबी लेके निकल जाता हूँ|
क़रये-क़रये पे मदीने का गुमाँ होता है||
‘फ़ज़कुरूनी अज़कुरकुम’ से ये मिलता है पयाम|
हम यहाँ ज़िक्र करें, ज़िक्र वहाँ होता है||
क्या करे ‘नासिर’-ए-आसी शहा तेरी मिदहत?
पूरे क़ुरआन में जब तेरा बयाँ होता है||
कभी तो ख़्वाब में जलवा दिखाओ आक़ा मेरे||
मैं भूल जाऊँ ज़माने का ग़म जिसे पी कर|
मुझे वो जाम किसी दिन पिलाओ आक़ा मेरे||
नहीं है ‘नासिर’-ए-आसी को ख़्वाहिश-ए-जन्नत|
बस अपने क़दमों में इसको सुलाओ आक़ा मेरे||
और बदों से लौ लगाना आज-कल फ़ैशन में है||
थियेटर और डिसको से रग़बत और नफरत दीन से|
मस्जिदों से जी चुराना आज-कल फ़ैशन में है||
सेफ़्टी रेज़र ने ‘नासिर’ फिर के चेहरे पर कहा
मर्द से औरत बनाना आजकल फैशन में है||
जहेज़ चाहिए शादी तो बस बहाना है||
किसी ग़रीब की बेटी का कौन रखे ख़्याल?
ख़्याल-ए-उक़बा कहाँ दुनिया तो बस बनाना है||
जहेज़ में इन्हें मिल जाए बस हवाई जहाज़|
हवाई अड्डा बनाने को कया ठिकाना है??
है वास्ता तुझे बहनों का कर ले तौबा ऐ दोस्त
जहेज़ अच्छा नहीं, ये रस्म जाहिलाना है|
जवानो, तुम से है ‘नासिर’की अर्ज़ कर लो ये अह्द
हर इक ग़रीब की इज़्ज़त हमें बचाना है||
अगर चाहूँ ब्याँ करना तो मेरी बेबसी होगी
मेरे रब ने तेरे क़दमों में रखी है मेरी जन्नत
अगर नाराज़ मैं कर दूँ तो कैसे हाज़री होगी
अगर राज़ी हो माँ तो है यक़ीं ‘नासिर मनेरी’ को
क़्यामत में यक़ीनन मेरी भी बिगड़ी बनी होगी||
आप सोच रहे होंगे कि इतनी लम्बी तम्हीद आख़िर किसके लिए बाँधी जा रही है? तो सुन लें ये बच्चा कोई और नहीं बल्कि “नासिर मनेरी” है| चुनाँचे जब “ताबाँ” का “ऐवान-ए-अशरफिया के उभरते शोअरा नंबर” निकला तो जहाँ बहुत से शोअरा के कलाम दिलचस्पी से पढ़े गए वहीं ‘नासिर’ मनेरी का कलाम भी ख़ूब चर्चे में रहा| ख़ास तौर से ‘फैशन में है’ वाले कलाम को पढ़कर अहले ज़ौक़ ख़ूब महज़ूज़ हुए और दादे तहसीन दिए बग़ैर नहीं रह सके| ‘नासिर मनेरी’ को मैं ने कई रंगों में देखा है| कभी वो मिल्लत की ज़्बूँ हाली पर मर्सिया ख़्वानी करने लगते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि सारे जहाँ का दर्द उन्हीं के जिगर में पैवस्त हो गया है| कभी ज़राफ़त अंगेज़ी पर उतरते हैं तो सुनने वाला “अभी और, अभी और” की तमन्ना करने लगता है| जब एक शायर की हैसियत से अपना कलाम सुनाने लगते हैं तो पूरी महफ़िल अश अश करने लगती है| कभी वो तहरीरी सरगर्मियाँ दिखाते हुए किताबें, रिसाले और पैमप्लेट वग़ैरह शाया हैं तो उनहें हासिल करने वालों का ताँता बँध जाता है| ग़र्ज़ कि मुख़तलिफ़ खूबियों के मालिक ‘नासिर मनेरी’ अपने आप में एक जहान हैं| मैं उनकी उर्दू शायरी से तो मुतअस्सिर था ही अपना अंग्रेज़ी और हिंदी कलाम सुना कर उन्होंने मज़ीद अपना गिरवीदा बना लिया है| मौसूफ़ पाँच भाषाओं में लेख भी लिखते हैं और कविताएँ भी| उन पाँच भाषाओं में उर्दू, हिंदी, अंग्रेज़ी के साथ-साथ अरबी और फ़ारसी भी शामिल हैं| उन्होंने अपनी तन्ज़ीम ‘मनेरी फाउण्डेशन’ को इतने कम दिनों में जिस तरह कामयाबी के आसमान तक पहुँचाया है उसकी मिसाल ख़ाल-ख़ाल ही मिलती है| अभी उनकी उम्र मुशकिल से 20 के आस-पास होगी मगर उनकी दीनी व मिल्ली, समाजी व तसनीफ़ी कारनामों को देख कर यक़ीन नहीं होता| क्योंकि इस उम्र में ही मनेरी फाउण्डेशन के संस्थापक व अधयक्ष, मनेरी पब्लिकेशन के डायरेक्टर, मनेरी लाइब्रेरी के सिक्रेट्री मनेरी मैग्ज़ीन के चीफ़ एडिटर और कई किताबों के राइटर हैं| अल्लाह उनकी उम्र में बरकत दे| (आमीन)
फैज़ान सरवर मिस्बाही,
जामिया अशरफिया मुबारकपुर,
02/02/2015
अशरफिया पैमाने पर प्रकाशित होने वाले पंद्रह रोज़ा अख़बार “ताबाँ” का मुझे विशेष अंक निकालना था| मौसम के अनुसार मैं ने “ऐवान-ए-अशरफिया के उभरते शोअरा नंबर” निकालने का एलान नामा लगा कर फरज़न्दान-ए-अशरफिया को सुचित कर दिया कि शेअर-ओ-सुख़न से दिलचस्पी रखने वाले तलबा(विधार्थी) अपने मुन्तख़ब अशआर ले कर “ताबाँ” के दफतर में हाज़िर हों जाएँ| चुनाँचे जहाँ बहुत से शोअरा अपने-अपने अशआर ले कर आए वहीं एक हाथ में काग़ज़ लिए एक ऐसा बच्चा भी सामने आया जिसके होँटों पर मुसकुराहट थी और पेशानी पर सितारा-ए-इक़बाल जगमग-जगमग कर रहा था| अलैक-सलैक के बाद हाथों से एक काग़ज़ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहाः इसे ‘ताबाँ’ में शाया कर दीजिए गा| काग़ज़ खोल कर देखा तो उसमें ये पंक्तियाँ दर्ज थी| लीजिए आप भी मुसकुराते लबों से एक बार पढ़ लीजिएः
ख़ाक-ए-तैबा
उसकी क़िसमत पे फ़िदा सारा जहाँ होता है|ख़ाक-ए-तैबा में मिला जिसको मकाँ होता है||
क्या नहीं मेरे शहा तुझपे अयाँ होता है?
जब्कि अल्लाह ही तुझसे न निहाँ होता है||
दिल में जब यादे नबी लेके निकल जाता हूँ|
क़रये-क़रये पे मदीने का गुमाँ होता है||
‘फ़ज़कुरूनी अज़कुरकुम’ से ये मिलता है पयाम|
हम यहाँ ज़िक्र करें, ज़िक्र वहाँ होता है||
क्या करे ‘नासिर’-ए-आसी शहा तेरी मिदहत?
पूरे क़ुरआन में जब तेरा बयाँ होता है||
आक़ा मेरे
कभी मेरा भी नसीबा जगाओ आक़ा मेरे|कभी तो ख़्वाब में जलवा दिखाओ आक़ा मेरे||
मैं भूल जाऊँ ज़माने का ग़म जिसे पी कर|
मुझे वो जाम किसी दिन पिलाओ आक़ा मेरे||
नहीं है ‘नासिर’-ए-आसी को ख़्वाहिश-ए-जन्नत|
बस अपने क़दमों में इसको सुलाओ आक़ा मेरे||
फ़ैशन
दीन-ओ-सुन्नत को भुलाना आज-कल फ़ैशन में है|और बदों से लौ लगाना आज-कल फ़ैशन में है||
थियेटर और डिसको से रग़बत और नफरत दीन से|
मस्जिदों से जी चुराना आज-कल फ़ैशन में है||
सेफ़्टी रेज़र ने ‘नासिर’ फिर के चेहरे पर कहा
मर्द से औरत बनाना आजकल फैशन में है||
जहेज़
ये रस्म-ए-ज़र है तबाही का शाख़साना है|जहेज़ चाहिए शादी तो बस बहाना है||
किसी ग़रीब की बेटी का कौन रखे ख़्याल?
ख़्याल-ए-उक़बा कहाँ दुनिया तो बस बनाना है||
जहेज़ में इन्हें मिल जाए बस हवाई जहाज़|
हवाई अड्डा बनाने को कया ठिकाना है??
है वास्ता तुझे बहनों का कर ले तौबा ऐ दोस्त
जहेज़ अच्छा नहीं, ये रस्म जाहिलाना है|
जवानो, तुम से है ‘नासिर’की अर्ज़ कर लो ये अह्द
हर इक ग़रीब की इज़्ज़त हमें बचाना है||
माँ
बयाँ अज़मत मेरी माँ कैसे मुझसे आपकी होगीअगर चाहूँ ब्याँ करना तो मेरी बेबसी होगी
मेरे रब ने तेरे क़दमों में रखी है मेरी जन्नत
अगर नाराज़ मैं कर दूँ तो कैसे हाज़री होगी
अगर राज़ी हो माँ तो है यक़ीं ‘नासिर मनेरी’ को
क़्यामत में यक़ीनन मेरी भी बिगड़ी बनी होगी||
आप सोच रहे होंगे कि इतनी लम्बी तम्हीद आख़िर किसके लिए बाँधी जा रही है? तो सुन लें ये बच्चा कोई और नहीं बल्कि “नासिर मनेरी” है| चुनाँचे जब “ताबाँ” का “ऐवान-ए-अशरफिया के उभरते शोअरा नंबर” निकला तो जहाँ बहुत से शोअरा के कलाम दिलचस्पी से पढ़े गए वहीं ‘नासिर’ मनेरी का कलाम भी ख़ूब चर्चे में रहा| ख़ास तौर से ‘फैशन में है’ वाले कलाम को पढ़कर अहले ज़ौक़ ख़ूब महज़ूज़ हुए और दादे तहसीन दिए बग़ैर नहीं रह सके| ‘नासिर मनेरी’ को मैं ने कई रंगों में देखा है| कभी वो मिल्लत की ज़्बूँ हाली पर मर्सिया ख़्वानी करने लगते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि सारे जहाँ का दर्द उन्हीं के जिगर में पैवस्त हो गया है| कभी ज़राफ़त अंगेज़ी पर उतरते हैं तो सुनने वाला “अभी और, अभी और” की तमन्ना करने लगता है| जब एक शायर की हैसियत से अपना कलाम सुनाने लगते हैं तो पूरी महफ़िल अश अश करने लगती है| कभी वो तहरीरी सरगर्मियाँ दिखाते हुए किताबें, रिसाले और पैमप्लेट वग़ैरह शाया हैं तो उनहें हासिल करने वालों का ताँता बँध जाता है| ग़र्ज़ कि मुख़तलिफ़ खूबियों के मालिक ‘नासिर मनेरी’ अपने आप में एक जहान हैं| मैं उनकी उर्दू शायरी से तो मुतअस्सिर था ही अपना अंग्रेज़ी और हिंदी कलाम सुना कर उन्होंने मज़ीद अपना गिरवीदा बना लिया है| मौसूफ़ पाँच भाषाओं में लेख भी लिखते हैं और कविताएँ भी| उन पाँच भाषाओं में उर्दू, हिंदी, अंग्रेज़ी के साथ-साथ अरबी और फ़ारसी भी शामिल हैं| उन्होंने अपनी तन्ज़ीम ‘मनेरी फाउण्डेशन’ को इतने कम दिनों में जिस तरह कामयाबी के आसमान तक पहुँचाया है उसकी मिसाल ख़ाल-ख़ाल ही मिलती है| अभी उनकी उम्र मुशकिल से 20 के आस-पास होगी मगर उनकी दीनी व मिल्ली, समाजी व तसनीफ़ी कारनामों को देख कर यक़ीन नहीं होता| क्योंकि इस उम्र में ही मनेरी फाउण्डेशन के संस्थापक व अधयक्ष, मनेरी पब्लिकेशन के डायरेक्टर, मनेरी लाइब्रेरी के सिक्रेट्री मनेरी मैग्ज़ीन के चीफ़ एडिटर और कई किताबों के राइटर हैं| अल्लाह उनकी उम्र में बरकत दे| (आमीन)
फैज़ान सरवर मिस्बाही,
जामिया अशरफिया मुबारकपुर,
02/02/2015
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