Hindi Poetries

मिदहत हुसैन की

हम किस तरह बयाँ करें अज़मत हुसैन की।
जन्नत से पूछ लीजिए रिफ़अत हुसैन की।।

नाना नबी हैं, बाबा अली, माँ हैं फ़ातिमा।
है ख़ूब देखिये ना अशीरत हुसैन की।।

सब जन्नती जवान के सरदार हैं हुसैन।
जाने को खुल्द है हमें हाजत हुसैन की।।

सुनते ही जिसको लश्करे बातिल लरज़ उठा।
ऐसी थी कर्बला में ख़िताबत हुसैन की।।

कहता है तू यज़ीद था हक़ पर न कि हुसैन।
क्यों पाल ली है तू ने अदावत हुसैन की।।

तू मअ’रके को कहता है शहज़ादगाँ की जंग।
महँगी पड़ेगी तुझको अदावत हुसैन की।।

‘नासिर मनेरी’ क्या लिखे शाने हुसैन में।
करती है सारी दुनिया जो मिदहत हुसैन की।।

सजदा हुसैन का

दुनिया में हो रहा है वो शोहरा हुसैन का|
करबल में कट गया था जो कुम्बा हुसैन का||

मैदाने करबला में किया जो हुसैन ने|
सब सजदों में अहम है वो सजदा हुसैन का||

बातिल के आगे सर ना झुकाया, कटा दिया|
करबल में देखा दुनिया ने जज़्बा हुसैन का||

जाँ दे दी पर लईँ की इमामत ना की क़बूल|
देखे तो कोई अक़्ल से रुतबा हुसैन का||

“नासिर मनेरी” कहिये ना शाने इमाम में|
पढ़ती है दुनिया फ़ख़्र से ख़ुतबा हुसैन का||

नज़्म: आ गया रमज़ान है।

दोस्तो! कर लो इबादत आ गया रमज़ान है|
माँग लो तुम रब से रहमत आ गया रमज़ान है||

बन्द अब्वाबे जहन्नम जिस में हो जाते सभी|
है यही वो माहे रहमत आ गया रमज़ान है||

जकड़े हैं जंजीर में सारे शयातीं बे गुमाँ|
खुल गए अब्वाबे जन्नत आ गया रमज़ान है||

एक नेकी की जज़ा सत्तर गुना ज़्यादा मिले|
इस महीने में है बरकत  आ गया रमज़ान है||

सहरी व इफ्तारी व रोज़ा तरावीह और नमाज़|
ख़ूब अब कर लो इबादत आ गया रमज़ान है||

कर दे मौला तू करम “नासिर मनेरी” पर ज़रा|
दीन की ये कर ले ख़िदमत आ गया रमज़ान है||

Comments

  1. مدحت حسین کی
    मिदहत हुसैन की
    ہم کس طرح بیاں کریں عظمت حسین کی
    جنت سے پوچھ لیجیے رفعت حسین کی
    हम किस तरह बयाँ करें अज़मत हुसैन की।
    जन्नत से पूछ लीजिए रिफअत हुसैन की।।
    نانا نبی ہیں، بابا علی، ماں ہیں فاطمہ
    ہے خوب دیکھیے نا عشیرت حسین کی
    नाना नबी हैं, बाबा अली, माँ हैं फातिमा।
    है ख़ूब देखिए ना अशीरत हुसैन की।।
    سب جنتی جوان کے سردار ہیں حسین
    جانے کو خلد ہے ہمیں حاجت حسین کی
    सब जन्नती जवान के सरदार हैं हुसैन।
    जाने को खुल्द है हमें हाजत हुसैन की।।
    سنتے ہی جس کو لشکرِ باطل لرز اٹھا
    ایسی تھی کربلا میں خطابت حسین کی
    सुनते ही जिस को लश्करे बातिल लरज़ उठा।
    ऐसी थी कर्बला में ख़िताबत हुसैन की।।
    گھر بار اپنا دین کی خاطر لٹا دیا
    رکھے گی یاد دنیا شہادت حسین کی
    घर बार अपना दीन की ख़ातिर लुटा दिया।
    रख्खे गी याद दुनिया शहादत हुसैन की।।
    کیوں معرکے کو کہتے ہو شہ زادگاں کی جنگ
    مہنگی پڑے گی تم کو عداوت حسین کی
    क्यों मअरके को कहते हो शहज़ादगाँ की जंग।
    महँगी पड़ेगी तुम को अदावत हुसैन की।।
    ناصرؔ منیری کیا لکھے شانِ امام میں
    کرتی ہے ساری دنیا جو مدحت حسین کی
    'नासिर मनेरी' क्या लिखे शाने इमाम में।
    करती है सारी दुनिया जो मिदहत हुसैन की।।

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